Monday, March 31, 2014

खजाना



हर साल बढ़ती उम्र को मिली दुआओंको
संभालकर के रख देती हु मैं एक सन्दुक में
जैसे ढलती हुई शाम की संदली धुप को
अपनी शाखोंमे छुपाने की कोशिश करता हुआ
मेरे आँगन का पेड़

कुछ ग्रीटिंग कार्ड है
मेरा नाम लिखा है ऊपर
निचे किसी और की लिखी
कुछ पंक्तिया हैं
मुझे बधाई देती हुई
सबसे निचे लिखे हुए नाम के साथ
रख लिए है अपने समझ के
मैंने मेरे सन्दुक में

कुछ दुआए सरपे हाथ रख कर दी थी
वो बुजुर्ग थे और मैंने पाँव छूए थे उनके
वो छुअन भी जतन करना चाहती हू
जन्मदिन पर मिले उपहारोंके साथ

हर साल मां जन्मदिन पर
कपडे खरीद कर लाती हैं
वो जतन नही किए कभी
बारबार पेहनके पुराने कर देती हुं
हर बार, हर साल
क्योंकी मां हर साल नया कपडा दिलाती हैं

सन्दुकमें रखें बर्थ डे विश,
सरपर रखें हाथोंसे दिल में उतरी दुआए
वो कुछ चुनिंदा उपहार
संदली धूप बटोरता आंगन का पेड
सब कुछ नही संभाल पाता हैं
पत्तोंसे छनकर कुछ किरने बरस जाती हैं
आंगन में पत्तोंका ढेर भी लग जाता हैं हर शाम
उसके नीचे छुप जाता हैं
मां नें पुता हुआ वो आंगन का हिस्सा 
पर मुझे पता हैं
मां हर दिन सुबह होते ही
आंगनमें झाडू लगाती हैं

मां नें फिलहाल ही नया ड्रेस खरीदके दिया हैं 

वर्षा वेलणकर 

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