Sunday, October 26, 2014

चलो, आज एक सपना बो दे


चलो, आज एक सपना बो दे
मिट्टी के ढेरों परतोंके नीचे
जो महीन, काली, गीली सी
हाथों को जो थाम लेती हैं
उस मिट्टी के हवाले कर दे
तेरे मेरे एक नन्हें अरमान का बिज
चलो आज एक सपना बो दे
अरमान जो मन में मेरे जागा था
तेरी ख्वाहिशोंके साथ भागा था
हमारी खुली खुली आँखों में
जब आकर बसा था वह
चलो, आज वही सपना बो दे
आंखोकी बारिशों से जतन करे
कभी छाव, कभी धुप उसपर धरे
जब करवट बदलेगा, साँस लेगा
सपना हमारा हमें आवाज देगा
तब हम थामेंगे दामन उसका
और फिर नए सिरेसे करेंगे
एक नए सफ़र का आगाज
एक कोरी करारी मंजिल की ओर
चल देंगे हम...
चलो, आज यही एक सपना बो दे
वर्षा वेलणकर

Wednesday, October 15, 2014

उम्मीद 



रंगबिरंगे कागजोंके टुकड़ो को
जोड़-जोड़ कर मैंने कुछ 
फुल, गुलदस्ते और तितलियाँ बनायीं हैं 
जानती हूँ तुम हँस के कहोंगे,
बेजान है ये सारे; वक्त की बर्बादी!


तो फिर जरा याद करों और बताओ,
गीली रेत के बड़े बड़े टीले बनाकर
और दोनों ओर से कुरेदकर
जब हात मिलाते थे टिलोंके अंदर
कस के पकड़ते थे, वों क्या था?


बड़ो ने जिसे बेमानी करार दिया था
उन सपनोंको खरीदनेके लिए
गुल्लक में चव्वन्नि-अठ्ठनीया 
जमा की थी, वो क्या था?


उम्मीदेही तो थी वो सारी
कभी साथ न छोड़ने की;
सपनों को अपनाने की


उसी उम्मीद से आज 
इन कागजोंकी तितलियोंको
और उन ढेर सारे फुलोंको
रंगों से सजानेका मन हैं
शायद...
उन्हीसे मेरे आंगन में बहार आ जाए!


वर्षा वेलणकर

Sunday, October 12, 2014

यादें

यादें 

अब कोई याद किसी जिस्म से लिपट के नहीं आती 
अब कोई याद किसी नाम या पते की मोहताज नहीं 

यादों के वह क़िस्से, उनके जनम की वह कहानियाँ  
अब वो क़िरदार उनके शहरोंकी गलियोंसे नदारद है 

अब जिस्मोंसे आज़ाद होकर यादें बग़ल में बैठती है 
एहसासोंकी ख़ुश्बू से सराबोर साँसों में उतरती है याँदे 

बचपन की मासूमियत और प्यार का इज़हार है यादें 
दोस्ती, दग़ा, दुख, कभी दिल को मिला क़रार है यादें  

अब कोई याद किसी ज़िस्म से लिपट के नहीं आती 
अब कहानियों से मिली एक सिख बन गई है यादें 

वर्षा वेलणकर 



इबादत

इबादत 

जुनू जहा में ज़र-जमीं का 
मुझे तो बस तेरे नाम का 
शान, शौक़त और शोहरत 
कुछ भी नहीं है काम का 

तेरी पनाह ही चाह में 
भटक रहे सब दरबदर 
जान, जिस्म, वज़ूद तू ही 
बंदा तो है बस नाम का 

साँसों की गर्मी तेरी नेमत 
अश्कों की बारिश तू ही तू 
ज़ानो पे तेरे रख के सर ये 
एक पल तो दे आराम का?

वर्षा वेलणकर