Thursday, February 13, 2014

तलाश


तलाश 

एक रिश्ता बुना तुमसे, 
रेशमके धागे से   
सपना था या हक़ीक़त, 
सोये थे हम या जागे थे?

रिश्ता वो जो बुना था तुमसे 
ये दौर तभीसे चला है 
कोशीश लाख़ कि है मैंने 
पर अब पता चला हैं 

उस रिश्ते का ताना-बाना  
लफ्जोंसे उसका जोड़ लगाना 
काम कोई आसान नहीं 

इसीलिए कुछ किताबोंसे
और सितारोंसे जड़े ख्वाबोंसे 
कुछ लफ्ज उधार लिए हैं मैंने
 
क्योँकि बयाँ करनी हैं 
तुमसे जुड़ी बातें सारी 
थोड़ी अपनीसी है 
बाकी बस सिर्फ तुम्हारी 

पर उधार लफ्जों में वो बात कहा? 
हमनें देखें हैं जो दौर 
वैसे किसीके हालात कहाँ?

वो जो कहनी है दास्ताँ 
वो सिर्फ़ हमारी हैं 
बयां करने वो कहानी 
अभी लफ्ज़ो कि तलाश जारी हैं 

वर्षा वेलणकर 

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