Monday, February 3, 2014


प्रीती लिमसे-शाह ये तुम्हारे लिए. 


दिन, महीने, साल बढ़ी उम्र कि परते उठाई  
तो दिल के कोनेमें पड़ी हुई इक चीज़ नजर आई 

मैं हैरान, दिल तो ख़ाली पड़ा था सालोंसे 
नहीं किसी का आना-जाना,
दरवाज़े सारे बंद रखें थे तालोंसे

हाथ बढ़ाकर उसे टटोला, और एक आवाज लगाई 
जान थी उसमें, नजर उठाके वो मुस्काई 

"बचपन नाम है मेरा, साथ तुम्हारे जन्मी थी  
मुझे उठालो और संभालो, मैं तुम्हारी अपनी थी"

बचपन का थामा हाथ तो टूटें सारें ताले 
ख़ुल गए दरवाज़े, 
अब दिलमें यादोंके सतरंगी मेले 

वर्षा वेलणकर    

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