यादें
अब कोई याद किसी जिस्म से लिपट के नहीं आती
अब कोई याद किसी नाम या पते की मोहताज नहीं
यादों के वह क़िस्से, उनके जनम की वह कहानियाँ
अब वो क़िरदार उनके शहरोंकी गलियोंसे नदारद है
अब जिस्मोंसे आज़ाद होकर यादें बग़ल में बैठती है
एहसासोंकी ख़ुश्बू से सराबोर साँसों में उतरती है याँदे
बचपन की मासूमियत और प्यार का इज़हार है यादें
दोस्ती, दग़ा, दुख, कभी दिल को मिला क़रार है यादें
अब कोई याद किसी ज़िस्म से लिपट के नहीं आती
अब कहानियों से मिली एक सिख बन गई है यादें
वर्षा वेलणकर
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