Sunday, October 12, 2014

यादें

यादें 

अब कोई याद किसी जिस्म से लिपट के नहीं आती 
अब कोई याद किसी नाम या पते की मोहताज नहीं 

यादों के वह क़िस्से, उनके जनम की वह कहानियाँ  
अब वो क़िरदार उनके शहरोंकी गलियोंसे नदारद है 

अब जिस्मोंसे आज़ाद होकर यादें बग़ल में बैठती है 
एहसासोंकी ख़ुश्बू से सराबोर साँसों में उतरती है याँदे 

बचपन की मासूमियत और प्यार का इज़हार है यादें 
दोस्ती, दग़ा, दुख, कभी दिल को मिला क़रार है यादें  

अब कोई याद किसी ज़िस्म से लिपट के नहीं आती 
अब कहानियों से मिली एक सिख बन गई है यादें 

वर्षा वेलणकर 



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