उम्मीद
रंगबिरंगे कागजोंके टुकड़ो को
जोड़-जोड़ कर मैंने कुछ
फुल, गुलदस्ते और तितलियाँ बनायीं हैं
जानती हूँ तुम हँस के कहोंगे,
बेजान है ये सारे; वक्त की बर्बादी!
तो फिर जरा याद करों और बताओ,
गीली रेत के बड़े बड़े टीले बनाकर
और दोनों ओर से कुरेदकर
जब हात मिलाते थे टिलोंके अंदर
कस के पकड़ते थे, वों क्या था?
बड़ो ने जिसे बेमानी करार दिया था
उन सपनोंको खरीदनेके लिए
गुल्लक में चव्वन्नि-अठ्ठनीया
जमा की थी, वो क्या था?
उम्मीदेही तो थी वो सारी
कभी साथ न छोड़ने की;
सपनों को अपनाने की
उसी उम्मीद से आज
इन कागजोंकी तितलियोंको
और उन ढेर सारे फुलोंको
रंगों से सजानेका मन हैं
शायद...
उन्हीसे मेरे आंगन में बहार आ जाए!
वर्षा वेलणकर
मस्त, खूप सुंदर! Once up on a time, Kaku! :)
ReplyDeleteThanks Niru...
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