Wednesday, May 7, 2014

तुम्हारा साथ



तुम्हारा साथ

लुत्फ़ उठाने ज़िंदगीका 
एक और साँस ली हैं 
हैराँ हैं देख के यह मन्ज़र 
ज़िंदगी तुमसे जो बाँट ली हैं 

एक कोना आँगन का
एक टुकड़ा आसमान 
एक घने पेड़ से टपका 
सपना भी साथ ही हैं 

पत्तोंसे झरती धूप हैं 
बरसात में रिसता पानी 
खुशियोंके गुल-गुंचे है 
ग़मोंकीभी सौगात मिली है 

हर एक पल, हर लम्हा  
आगाज़ नए मौसम का 
होंठोंके गुलोंसे पूछों 
अश्कोंकी नवाजीश हीं है
ज़िंदगी तुमसे जो बाँट ली हैं

वर्षा वेलणकर  


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