Tuesday, December 16, 2014


क्या नाम हैं तुम्हारा?
किस मीट्टी के बने हो तुम?
क्या ज़ात हैं तुम्हारी?
ऐसी क्योंन सी मज़हब के बाशिंदे हो
जो हमनस्ल को हलाक करने का हुक्म देती हैं?
किस उपरवाले के सामने
इबादत के लिए सर झुकाते हो?
आँखे मूँद कर, हाथ फैला कर क्या दुआ माँगते हो?
क्या उसकी सूरत का कोई जर्रा 
नजर नहीं आया तुम्हे उस नन्ही जान की आँखों में?
उसका नूर क्या उस मासूम चेहरे पर नहीं था
जिसे तुमने अपनी बंदूक की नोक पर धरा था?
क्या कोई भी रिश्ता नहीं था तुम्हारा उससे
जिसे आज तुमने तार तार कर दिया?
कैसा खून दौड़ रहा है तुम्हारी रगों में
जो उस ख़ौफ़ज़दा, थरथराते जिस्म के 
अंदर दौड़ते खून से जुदा हैं?
ये किस मकसद की लड़ाई लड़ रहे हो तुम?
क्या बात रखनी हैं तुम्हें सबके आगे?
क्या मनवाना चाहते हो दुनियासे?
किस चीज़ का बदला लेना चाहते हो?

अब बस घिन आती हैं तुमसे

वर्षा

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