रूह
आपकी नज्म ने उठाया एक सवाल
क्या रूह देखी है कभी?
रूह को महसूस किया है? (गुलज़ार)
किसीने बिना स्याही के कलमसे
कोशिश की थी कुछ लिखनेकी
पाक कोरे कागज़ पर
कुछ अल्फ़ाज़ उभरके आये थे
कागज़ के पिछे की ओर
बंद आँखों से मैं
उँगलियाँ घुमाती रही
पूछती रहीं के,
क्या रूह महसूस हुई कहीं?
हवाओं ने रुख बदला
कागज़ हवाओंके हवाले
फिर वहीं दौड़; वो भागमभाग
आँधी थमी तो कागज फिर हाथ आया
फिर वहीं सवाल
क्या रूह देखी है कभी?
रूह को महसूस किया है?
अब जो हाथ आया है कागज
उंगलियाँ फेर रही हूँ उन अल्फाजोपर
इस बार उनकी गहराई को छू रही है उंगलियाँ
जो लिखा है बड़ा जोर देकर
वही दिखा है उंगलियोंको
रूह देखी तो नहीं है
पर रूह को महसूस किया है!
वर्षा वेलणकर
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