Friday, July 4, 2014

ख़ामोशी से बातें

ख़ामोशी से बातें 

कलम से टपकती स्याही की दो बुँदे 
उठाके मैंने रख दी थी तुम्हारे लबोंपे
इसी उम्मीद में  

के कुछ तो कहोंगी तुम

ख़ामोशी चुभती है तुम्हारी


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बातें...
तुने कही हुई वह दो बातें
जो गाँठ बाँध ली है मैंने


के जिंदगी और मोहब्बत
सुर्ख गुलाब होते हैं 
काटों में खिलते हैं 
कांटों में पलते हैं 
काटों में मिलते हैं 
और कांटो से ही छिलते हैं 


बातें...
तेरी कही हुई बातें 

मैंने गाँठ बाँध ली है
गुलाब की सुर्खी का राज 

आज मैंने जाना है
तेरी कही हुई बातों से


वर्षा वेलणकर 

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