ख़ामोशी से बातें
कलम से टपकती स्याही की दो बुँदे
उठाके मैंने रख दी थी तुम्हारे लबोंपे
इसी उम्मीद में
के कुछ तो कहोंगी तुम
ख़ामोशी चुभती है तुम्हारी
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बातें...
तुने कही हुई वह दो बातें
जो गाँठ बाँध ली है मैंने
के जिंदगी और मोहब्बत
सुर्ख गुलाब होते हैं
काटों में खिलते हैं
कांटों में पलते हैं
काटों में मिलते हैं
और कांटो से ही छिलते हैं
बातें...
तेरी कही हुई बातें
मैंने गाँठ बाँध ली है
गुलाब की सुर्खी का राज
आज मैंने जाना है
तेरी कही हुई बातों से
वर्षा वेलणकर
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