गुल्लक
कल रात बडी उमस थी हवा में
नींद नहीं आयी तो गुल्लक तोड़ा
सिक्के उंडेलके बैठ गई गिनने
कुछ रोज मिलनेवाले सिक्के थे
इन्हें संभालके रखो तो पर्स भारी हो जाता हैं
रोज शाम घर आतें ही पर्स खोलकर
सिक्के गुल्लक में डाल देती हू
जरूरत से ज्यादा होते हैं शायद
इनका वजन उठाने की न तो हिम्मत होती हैं
और न ही ताकद
भारी भारी सा कुछ भी अच्छा नहीं लगता
कुछ नए सिक्के जो सरकारने बाज़ार में लाए है
नए है और अच्छे दिखते है तो खर्च करने का मन नहीं होता
लाकर गुल्लक में डाल देती हू
गिनती में कम है पर अलग है
नया हो और अलग भी तो अच्छा लगता है
कुछ सिक्के अब बाज़ार में नहीं चलते
और 'अनमोल' हो गए है
तो इसलिए उन्हें पास ही रख लिया है
हरबार गुल्लक तोड़ती हु तो इन्हे अलग कर देती हू
और फिर नए गुल्लक में डाल देती हू
बिल्कुल सबसे पहले
ये न तो गिनती में कम होते है न ही ज्यादा
फिर ख़याल आया,
सारे के सारे सिक्के ही क्यों जमा किए है मैंने?
नोट कहा हैं?
उनका तो मोल ज्यादा होता हैं?
और वज़न ना के बराबर?
तो क्यों खर्च कर दिए मैंने?
क्या उन्हें रोज खर्च करना जरूरी था?
गिनते -गिनते ख़याल आया
यादें भी तो जमा की है मैंने दिल के गुल्लक में!
कुछ रोज मिलनेवाली, वजन से भारी
और जरुरत से ज्यादावाली यादें;
कुछ जो नई-नई अलग दिखनेवाली यादें;
कुछ वो जो अब मायनेँ नहीं रखती और अनमोल है
न गिनती में कम होती है न ज्यादा
जिन्हे जतन किया है मैंने
साथ ही साथ उनकाभी हिसाब लगाना होगा
जो यादें जमा नहीं की कभी
नोटों की तरह खर्च कर दी
जिनका मोल ज्यादा था और वजन कम
खैर, यह सब फिर कभी होगा
जब किसी रात हवा में उमस होगी
और आंखो से नींद नदारद होगी
फिलहाल इन सिक्कोंको समेट लू
कल जाकर दुकानदार को दे आऊ
बदलें में नोट ले आऊ
क्योंकी उनका वजन कम होता है
और मोल ज्यादा!
पर हा एक बात है, नोट ख़र्च हो जाते है!
वर्षा वेलणकर
कल रात बडी उमस थी हवा में
नींद नहीं आयी तो गुल्लक तोड़ा
सिक्के उंडेलके बैठ गई गिनने
कुछ रोज मिलनेवाले सिक्के थे
इन्हें संभालके रखो तो पर्स भारी हो जाता हैं
रोज शाम घर आतें ही पर्स खोलकर
सिक्के गुल्लक में डाल देती हू
जरूरत से ज्यादा होते हैं शायद
इनका वजन उठाने की न तो हिम्मत होती हैं
और न ही ताकद
भारी भारी सा कुछ भी अच्छा नहीं लगता
कुछ नए सिक्के जो सरकारने बाज़ार में लाए है
नए है और अच्छे दिखते है तो खर्च करने का मन नहीं होता
लाकर गुल्लक में डाल देती हू
गिनती में कम है पर अलग है
नया हो और अलग भी तो अच्छा लगता है
कुछ सिक्के अब बाज़ार में नहीं चलते
और 'अनमोल' हो गए है
तो इसलिए उन्हें पास ही रख लिया है
हरबार गुल्लक तोड़ती हु तो इन्हे अलग कर देती हू
और फिर नए गुल्लक में डाल देती हू
बिल्कुल सबसे पहले
ये न तो गिनती में कम होते है न ही ज्यादा
फिर ख़याल आया,
सारे के सारे सिक्के ही क्यों जमा किए है मैंने?
नोट कहा हैं?
उनका तो मोल ज्यादा होता हैं?
और वज़न ना के बराबर?
तो क्यों खर्च कर दिए मैंने?
क्या उन्हें रोज खर्च करना जरूरी था?
गिनते -गिनते ख़याल आया
यादें भी तो जमा की है मैंने दिल के गुल्लक में!
कुछ रोज मिलनेवाली, वजन से भारी
और जरुरत से ज्यादावाली यादें;
कुछ जो नई-नई अलग दिखनेवाली यादें;
कुछ वो जो अब मायनेँ नहीं रखती और अनमोल है
न गिनती में कम होती है न ज्यादा
जिन्हे जतन किया है मैंने
साथ ही साथ उनकाभी हिसाब लगाना होगा
जो यादें जमा नहीं की कभी
नोटों की तरह खर्च कर दी
जिनका मोल ज्यादा था और वजन कम
खैर, यह सब फिर कभी होगा
जब किसी रात हवा में उमस होगी
और आंखो से नींद नदारद होगी
फिलहाल इन सिक्कोंको समेट लू
कल जाकर दुकानदार को दे आऊ
बदलें में नोट ले आऊ
क्योंकी उनका वजन कम होता है
और मोल ज्यादा!
पर हा एक बात है, नोट ख़र्च हो जाते है!
वर्षा वेलणकर